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GHAZAL

जितना गुमान से जुल्फों को सँवारा गया

जितना गुमान से जुल्फों को सँवारा गया

उतना इमान से ये बेसहारा गया

आपके हाथ में पत्थर क्यों नहीं है

आपकी तरफ भी तो इशारा गया

आपको तो सौ खून माफ थे

आपसे ये बेचारा न मारा गया

आदमी जंगल में था तो ठीक था

शहर में बसा कि मारा गया

लहू लहू में फर्क नहीं है

आपके क़त्ल पे मैं भी मारा गया

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जितना गुमान से जुल्फों को सँवारा गया — Murli Dhakad • ShayariPage