उसूल अलग हैं जमीन और दलदल के

उसूल अलग हैं जमीन और दलदल के

कमल को छूना मगर ज़रा संभल के

अवतार बदल के जो आ जाती है कभी खुशबू

हम ये कह देते हैं आओ कपड़े बदल के

इसी पल में वो मारे जाएँगे बेचारे

मुन्तज़िर थे जो उम्र भर इसी पल के

कौन सा जमाना आप ने देख लिया है

मेरी आँखों में सभी मंजर हैं आजकल के

अजीब हैं कि अजीब होना नहीं चाहते

रखते हैं जो अपनी शख्सियत बदल के