GHAZAL•
उसूल अलग हैं जमीन और दलदल के
By Murli Dhakad
उसूल अलग हैं जमीन और दलदल के
कमल को छूना मगर ज़रा संभल के
अवतार बदल के जो आ जाती है कभी खुशबू
हम ये कह देते हैं आओ कपड़े बदल के
इसी पल में वो मारे जाएँगे बेचारे
मुन्तज़िर थे जो उम्र भर इसी पल के
कौन सा जमाना आप ने देख लिया है
मेरी आँखों में सभी मंजर हैं आजकल के
अजीब हैं कि अजीब होना नहीं चाहते
रखते हैं जो अपनी शख्सियत बदल के