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GHAZAL

हम सबको इसी हैरत में मर जाना है

हम सबको इसी हैरत में मर जाना है

कि मरके फिर किधर जाना है

अच्छा हो गर हो बैचेनी का कोई सबब

ये क्या कि पता ही नहीं क्या पाना है

मेरे पास रखे हैं बहुत से कागज़ के फूल

क्या तुम्हारी नजर में कोई बुतखाना है

एक तो गिला न कर सका बारिशों का

और उस पर शौक तो ये है कि नहाना है

क्या कभी शाम की आंखों में तुमने

डूबते सूरज के दर्द को पहचाना है

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हम सबको इसी हैरत में मर जाना है — Murli Dhakad • ShayariPage