किधर जा रहा है जुगनू शाम उठाए
किधर जा रहा है जुगनू शाम उठाए
इधर बैठा हूँ मैं जाम उठाए

@murli-dhakad
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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किधर जा रहा है जुगनू शाम उठाए
इधर बैठा हूँ मैं जाम उठाए
ख़ाक हुआ तो वजूद फिर से मिट्टी के साथ बाँधा गया
मैं वो बदनसीब पत्थर था जो चिट्ठी के साथ बाँधा गया
अपने इरादों को अपनी जेब में रखा है
टटोलते टटोलते आस्तीन फट गई है
सुंदर कोयल सुंदर कागा सुंदर मृग के नैन
भागे 'रिंद' दौड़ता जाए दिवस दिखे ना रैन
ये हमें किसने वर्चस्व की लड़ाई दी
जो है ही नहीं उसे खोते हम हैं
जीना कहते हैं जिसे है तमाशा करना
जैसे नशे में हो फिर से नशा करना
ये कैसा तजुर्बा है कि दिल जलाने पे अक्सर
अंधेरा छा जाता है रोशनी नही होती
साकिया तेरे इस जहाँ में क्या मिलेगा
बहुत ढूंढूंगा तो खुदा मिलेगा
मेरे नशेमन में किसी तरह का अंधेरा नहीं है
उस ख़्वाब में न जी पाऊंगा जो मेरा नहीं है
किताबें खूबसूरत है, चेहरे स्याह है
शायद इसीलिए ये दुनिया तबाह है
आईने के दोनों तरफ मुजरिम खड़ा है और
लोग हैं कि आईने को गुनहगार बताते हैं
मेरी उंगलियों में पड़ गई है गिरहें तेरे गेसुओं की
आजकल किसी भी बात पर अकड़ जाती है
फरिश्ते फुर्सत में बैठकर लिखते हैं किसी का खराब होना
हर अंगूर की किस्मत में नहीं होता है शराब होना
हमसे क्या मान सम्मान की बातें 'रिंद'
हमने शराब के लिए किताबें बेची है
दुनिया का तो पता नहीं
आदमी एक बहाना है
आबोदाने के ख़ातिर एक चिड़िया
खुद पिंजरे में आ बैठती है
तुम्हारी आँखों से मैं खूबसूरत हूँ वरना
चाँद की अपनी कोई रोशनी नही होती
बताता हूँ राह राहगीरों को अब
राह में ही कहीं खो गया हूँ मैं
जाम कहने सुनने को कहानी रह गया है
और पीने को बस पानी रह गया है