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GHAZAL

ख्वाब टूटता है तो वो उसके निशां ढूँढता है

ख्वाब टूटता है तो वो उसके निशां ढूँढता है

चाँद फलक पर है, जमीं पर कहाँ ढूँढता है

तेरे ही अंदर है ये कसक साक़ी रुक जा

क्यूँ बेइंतहाँ दौड़ता है, यहाँ-वहाँ ढूँढता है

मुझसे मेरा वजूद तो छूटा जाता है पर मुझमें

कोई बेहद खिंचता है और इंसान ढूँढता है

मेरी किस्मत तेरी किस्मत के फसाने सुनती है

मेरा लहू तेरे लहू के निशान ढूँढता है

बस्ती पे बस्ती बसती जाती है और

गुम होते हुए इंसान को इंसान ढूँढता है

किसी नगमे, किसी ग़ज़ल, किसी मय के प्याले में

'रिंद' अपनी अनहद का मकान ढूँढता है

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ख्वाब टूटता है तो वो उसके निशां ढूँढता है — Murli Dhakad • ShayariPage