GHAZAL•
रात जैसे जैसे ढलती जा रही है
By Murli Dhakad
रात जैसे जैसे ढलती जा रही है
कोई कसक दिल में मचलती जा रही है
कोई गुनाह कर लिया होता
उम्र नाहक ढलती जा रही है
तस्कीन-ए-दिल की तलाश में
मेरी हैसियत बदलती जा रही है
नही जुनून का मुकाबला इश्क़ से
हैरत है तक़रीर बदलती जा रही है
'रिंद' अब जिंदा नहीं रहे शायद
ज़िंदगी संभलती जा रही है