Shayari Page
GHAZAL

रात जैसे जैसे ढलती जा रही है

रात जैसे जैसे ढलती जा रही है

कोई कसक दिल में मचलती जा रही है

कोई गुनाह कर लिया होता

उम्र नाहक ढलती जा रही है

तस्कीन-ए-दिल की तलाश में

मेरी हैसियत बदलती जा रही है

नही जुनून का मुकाबला इश्क़ से

हैरत है तक़रीर बदलती जा रही है

'रिंद' अब जिंदा नहीं रहे शायद

ज़िंदगी संभलती जा रही है

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