भले न जल्द हो ताख़ीर से मुहब्बत हो
भले न जल्द हो ताख़ीर से मुहब्बत हो
मगर जो हो तो किसी हीर से मुहब्बत हो

@varun-anand
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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भले न जल्द हो ताख़ीर से मुहब्बत हो
मगर जो हो तो किसी हीर से मुहब्बत हो
कोई मिसाल नहीं है तिरी मिसाल के बाद
मै बे ख़याल हुआ हूँ तिरे ख़याल के बाद
ज़रा सी छाँव कमाने में उम्र बीत गई
दरख़्त ख़ुद को बनाने में उम्र बीत गई
वक़्त मुश्किल कट रहा है, और तो सब ठीक है
दिल ज़रा नाशाद सा है, और तो सब ठीक है
जलवे तुझे दिखाएँगे बस इंतिज़ार कर
हम कौन हैं बताएँगे बस इंतिज़ार कर
रब्त है मुझ से तिरा तो रब्त का उनवान बोल
या मुझे अंजान कह दे या फिर अपनी जान बोल
इतनी अज़ीयतें न ले ख़ुद पर मिरे अज़ीज़
है वक़्त अब भी लौट जा तू घर मिरे अज़ीज़
किसी के वास्ते गुल हैं किसी को ख़ार हैं हम लोग
किसी के जानी दुशमन हैं किसी के यार हैं हम लोग
वफ़ा, ख़ुलूस, मदद, देखभाल भूल गए
अब ऐसे लफ़्ज़ों का सब इस्तिमाल भूल गए
जो ख़ौफ़नाक है, तुम को हसीन है साहब
तुम्हारी फ़िल्म में ये कैसा सीन है साहब
ये सुन कर हर कोई हैरान है अब
तू मेरी जाँ, किसी की जान है अब
दुनिया में और वक़्त बिताने का मन नहीं
लेकिन ख़ुदा के पास भी जाने का मन नहीं
तेरे पीछे होगी दुनिया पागल बन
क्या बोला मैंने कुछ समझा? पागल बन
अपनी आँखों में भर कर ले जाने हैं
मुझको उसके आँसू काम में लाने है
कहीं न ऐसा हो अपना वक़ार खा जाए
ख़िज़ाँ से फूल बचाएँ बहार खा जाए
मरहम के नहीं हैं ये तरफ़-दार नमक के
निकले हैं मिरे ज़ख़्म तलबगार नमक के
ख़ुद अपने ख़ून में पहले नहाया जाता है
वक़ार ख़ुद नहीं बनता बनाया जाता है
ग़ज़ल की चाहतों अशआ'र की जागीर वाले हैं
तुम्हें किस ने कहा है हम बरी तक़दीर वाले हैं
काश कि मैं भी होता पत्थर
गर था उन को प्यारा पत्थर
ये शोख़ियाँ ये जवानी कहाँ से लाएँ हम
तुम्हारे हुस्न का सानी कहाँ से लाएँ हम