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GHAZAL

रब्त है मुझ से तिरा तो रब्त का उनवान बोल

रब्त है मुझ से तिरा तो रब्त का उनवान बोल

या मुझे अंजान कह दे या फिर अपनी जान बोल

एक ही चेहरा नज़र में और लबों पे इक ही नाम

और क्या होती है सच्चे इश्क़ की पहचान बोल ?

मै अँगूठी बेच कर ले आया तेरी बालियाँ

सूने-सूने देखता कब तक मै तेरे कान बोल

ये मुलायम हाथ मेरे काम कब आएँगे जाँ?

कब बिछेगा इन से मेरे घर में दस्तर-ख़्वान बोल ?

कब मिलेगी सुब्ह तुझ से चाय की प्याली मुझे?

कब तेरे हाथों का खाऊँगा कोई पकवान बोल ?

कब तिरे वालिद मिरे वालिद से मिलने आएँगे?

कब तिरी अम्मी को बोलूँगा मैं अम्मी जान बोल?

पूछते है सब तिरा मैं कौन हूँ क्या नाम है

बोलने का वक़्त है अब, बोल मेरी जान बोल

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