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GHAZAL

भले न जल्द हो ताख़ीर से मुहब्बत हो

भले न जल्द हो ताख़ीर से मुहब्बत हो

मगर जो हो तो किसी हीर से मुहब्बत हो

फिर उसके पाँव को भाते नहीं हैं घुंघरू भी

वो जिसके पाँव को ज़ंजीर से मुहब्बत हो

किसी कमान की नज़रें हो मेरे सीने पर

मिरे भी दिल को किसी तीर से मुहब्बत हो

वो रक़्स करते हुए मक़्तलों को बढते हैं

कि जिनको यार की शमशीर से मुहब्बत हो

ख़ुदा करे के तुझे ऐब शायरी का लगे

तुझे भी "मीर तक़ी मीर" से मुहब्बत हो

वो आँख सोने की दीवार देखती ही नहीं

कि जिसको आपकी तस्वीर से मुहब्बत हो

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भले न जल्द हो ताख़ीर से मुहब्बत हो — Varun Anand • ShayariPage