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GHAZAL

ज़रा सी छाँव कमाने में उम्र बीत गई

ज़रा सी छाँव कमाने में उम्र बीत गई

दरख़्त ख़ुद को बनाने में उम्र बीत गई

फुज़ूल कह दिया उसने हमारी वहशत को

वो फ़न कि जिसको कमाने में उम्र बीत गई

वो एक रब्त जो तुझसे हमारा था ही नहीं

वो एक रब्त बचाने में उम्र बीत गई

ज़रूरी काम कोई वक़्त पे किया ही नहीं

बस अपनी मौज उड़ाने में उम्र बीत गई

जुनूँ-जुनूँ में चले आए दश्त में ये लोग

पर इनकी लौट के जाने में उम्र बीत गई

बस एक बार लिखा दिल पे यूँ ही उसका नाम

फिर उसको दिल से मिटाने में उम्र बीत गई

नदी से इश्क़ था मल्लाह को प कह न सका

और उसकी नाव चलाने में उम्र बीत गई

अब ऐसे शख़्स को पाना तो ख़्वाब ही

समझो कि जिसको हाथ लगाने में उम्र बीत गई

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ज़रा सी छाँव कमाने में उम्र बीत गई — Varun Anand • ShayariPage