हाँ मददगार की ज़रूरत है
हाँ मददगार की ज़रूरत है
छत हूँ दीवार की ज़रूरत है

@varun-anand
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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हाँ मददगार की ज़रूरत है
छत हूँ दीवार की ज़रूरत है
फ़रेबी शीरीं ज़ियादा ज़हीन लोगों से
गुरेज़ करता हूँ मैं ऐसे तीन लोगों से
सच बताएँ तो शर्म आती है
और छुपाएँ तो शर्म आती है
सखी के पाँव में मेहँदी लगी है
मुई के पाँव में मेहँदी लगी है
ज़हीन आप के दर पर सदाएँ देते रहे
जो ना-समझ थे वो दर-दर सदाएँ देते रहे
कहीं न ऐसा हो अपना वक़ार खा जाए
ख़िज़ाँ से फूल बचाएँ बहार खा जाए
यूँ अपनी प्यास की ख़ुद ही कहानी लिख रहे थे हम
सुलगती रेत पे उँगली से पानी लिख रहे थे हम
मरहम के नहीं हैं ये तरफ़-दार नमक के
निकले हैं मिरे ज़ख़्म तलबगार नमक के
ग़ज़ल की चाहतों अशआ'र की जागीर वाले हैं
तुम्हें किस ने कहा है हम बरी तक़दीर वाले हैं
ख़ुद अपने ख़ून में पहले नहाया जाता है
वक़ार ख़ुद नहीं बनता बनाया जाता है
ये शोख़ियाँ ये जवानी कहाँ से लाएँ हम
तुम्हारे हुस्न का सानी कहाँ से लाएँ हम
काश कि मैं भी होता पत्थर
गर था उन को प्यारा पत्थर
वो जिसके पाँव में रक्खे हों काइनात के फूल
क़ुबूल कैसे करेगा वो मेरे हाथ के फूल
ये प्यार तेरी भूल है क़ुबूल है
मैं संग हूँ तू फूल है क़ुबूल है
बहाना कर के वो बिछड़ा था मुझ से
या दूजा वाक़ई अच्छा था मुझ से
इसीलिए तो मुसाफ़िर तू सोगवार नहीं
कि तूने क़ाफ़िले देखे हैं पर गुबार नहीं
हमारी आँख से बरसा है ये कल रात का पानी
समझ बैठे हो जिस को आप भी बरसात का पानी
सुकूँ से रात बिताते थे मौज करते थे
जब उसके ख़्वाब न आते थे मौज करते थे
तिरे चेहरे की रौनक़ खा रहा है
ये किसका ग़म तुझे तड़पा रहा है।
धीमे धीमे कहता क्या है शोर मचा
ये हाकिम ऊँचा सुनता है शोर मचा