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GHAZAL

सच बताएँ तो शर्म आती है

सच बताएँ तो शर्म आती है

और छुपाएँ तो शर्म आती है

हम पे एहसान हैं उदासी के

मुस्कुराएँ तो शर्म आती है

हार की ऐसी आदतें हैं हमें

जीत जाएँ तो शर्म आती है

उसके आगे ही उसका बख़्शा हुआ

सर उठाएँ तो शर्म आती है

ऐश औकात से ज्यादा की

अब कमाएँ तो शर्म आती है

धमकियाँ ख़ुदकुशी की देते हैं

कर न पाएँ तो शर्म आती है

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