GHAZAL•
सच बताएँ तो शर्म आती है
By Varun Anand
सच बताएँ तो शर्म आती है
और छुपाएँ तो शर्म आती है
हम पे एहसान हैं उदासी के
मुस्कुराएँ तो शर्म आती है
हार की ऐसी आदतें हैं हमें
जीत जाएँ तो शर्म आती है
उसके आगे ही उसका बख़्शा हुआ
सर उठाएँ तो शर्म आती है
ऐश औकात से ज्यादा की
अब कमाएँ तो शर्म आती है
धमकियाँ ख़ुदकुशी की देते हैं
कर न पाएँ तो शर्म आती है