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GHAZAL

काश कि मैं भी होता पत्थर

काश कि मैं भी होता पत्थर

गर था उन को प्यारा पत्थर

लोगो की तो बात करें क्या

तेरा दिल भी निकला पत्थर

हम दोनों में बनती कैसे

एक था शीशा दूजा पत्थर

शीशा तो कमज़ोर बड़ा था

फिर भी कैसे टूटा पत्थर

सब के हिस्से हीरे मोती

मेरे हिस्से आया पत्थर

पारस था वो तुम ने जाना

सब ने जिस को समझा पत्थर

कल तक फूल थे जिन हाथों में

उन हाथों में आज था पत्थर

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