GHAZAL•
इसीलिए तो मुसाफ़िर तू सोगवार नहीं
By Varun Anand
इसीलिए तो मुसाफ़िर तू सोगवार नहीं
कि तूने क़ाफ़िले देखे हैं पर गुबार नहीं
नहीं ये बात नहीं है कि तुझ से प्यार नहीं
मै क्या करूँ कि मुझे ख़ुद का एतिबार नहीं
लगा हूँ हाथ जो तेरे तो अब सँभाल मुझे
मै एक बार ही मिलता हूँ बार-बार नहीं
मुझे कुरेदने वालो मै एक सहरा हूँ
कि मुझसे रेत ही निकलेगी आबशार नहीं
ग़मों से रिश्ता बना दोस्ती निभा इनसे
दुखों को पाल मेरी जान इनको मार नहीं
मिरे क़ुबूल पे उसने क़ुबूल कह तो दिया
पर एक बार कहा उसने तीन बार नहीं
जहाँ तू बिछड़ा वहाँ गीत बज रहा था यही
"मिरे नसीब में ऐ दोस्त तेरा प्यार नहीं"