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GHAZAL

बहाना कर के वो बिछड़ा था मुझ से

बहाना कर के वो बिछड़ा था मुझ से

या दूजा वाक़ई अच्छा था मुझ से

उसे जब जब ज़माना तंग करता

वो उसको छोड़ कर लड़ता था मुझ से

महीनों फूल भिजवाने पड़े थे

वो पहली बार जब रूठा था मुझ से

भरोसा फिर किसी पर हो न पाया

तुम्हारा आख़िरी रिश्ता था मुझ से

बड़ी मुद्दत में फिर से हाथ आया

बड़ी उजलत में जो छूटा था मुझ से

बुलंदी पर पहुच कर भूल बैठा

जो अक्सर सीढियाँ लेता था मुझ से

अब उस के बिन भी हँस कर कट रही है

कभी इक पल नहीं कटता था मुझ से

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बहाना कर के वो बिछड़ा था मुझ से — Varun Anand • ShayariPage