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GHAZAL

किसी के वास्ते गुल हैं किसी को ख़ार हैं हम लोग

किसी के वास्ते गुल हैं किसी को ख़ार हैं हम लोग

किसी के जानी दुशमन हैं किसी के यार हैं हम लोग

मुहब्बत कर तो लेते हैं मगर मजबूरियों के साथ

हमारा मसअला ये है दिहाड़ी-दार हैं हम लोग

उसे कहना दवा दे आके हमको अपने हाथों से

उसे कहना कई दिन से बड़े बीमार हैं हम लोग

दरो- दीवार से रिश्ता बनाकर दुख ही होना है

हमारा घर नहीं है ये किराएदार हैं हम लोग

हमारे जिस्म पर दुनिया का इक बाज़ार चस्पाँ है

किसी सरकारी बिलडिंग की कोई दीवार हैं हम लोग

कहीं क़समें निभाते हैं कहीं पर तोड़ देते हैं

कहीं ईमान वाले हैं कहीं गद्दार हैं हम लोग

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किसी के वास्ते गुल हैं किसी को ख़ार हैं हम लोग — Varun Anand • ShayariPage