सिसकती रुत को महकता गुलाब कर दूँगा
सिसकती रुत को महकता गुलाब कर दूँगा
मैं इस बहार में सब का हिसाब कर दूँगा

@rahat-indori
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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सिसकती रुत को महकता गुलाब कर दूँगा
मैं इस बहार में सब का हिसाब कर दूँगा
झूठों ने झूठों से कहा है सच बोलो
सरकारी एलान हुआ है सच बोलो
बुलाती है मगर जाने का नहीं
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं
ज़िंदगी की हर कहानी बेअसर हो जाएगी
हम ना होंगे तो ये दुनिया दर-ब-दर हो जाएगी
कभी दिमाग़ कभी दिल कभी नज़र में रहो
ये सब तुम्हारे ही घर हैं किसी भी घर में रहो
रात की धड़कन जब तक जारी रहती है
सोते नहीं हम ज़िम्मेदारी रहती है
दिए बुझे हैं मगर दूर तक उजाला है
ये आप आए हैं या दिन निकलने वाला है
दिल बुरी तरह से धड़कता रहा
वो बराबर मुझे ही तकता रहा
सूरज, सितारे चाँद मेरे साथ में रहे
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहे
मैं लाख कह दूँ कि आकाश हूँ ज़मीं हूँ मैं
मगर उसे तो ख़बर है कि कुछ नहीं हूँ मैं
अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए
घर से ये सोच के निकला हूँ कि मर जाना है
अब कोई राह दिखा दे कि किधर जाना है
सिर्फ़ ख़ंजर ही नहीं आँखों में पानी चाहिए
ऐ ख़ुदा दुश्मन भी मुझ को ख़ानदानी चाहिए
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
दिल के बाज़ार में बैठे हैं ख़सारा कर के
कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते
जान होती तो मिरी जान लुटाते जाते
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो