GHAZAL•
दिल बुरी तरह से धड़कता रहा
By Rahat Indori
दिल बुरी तरह से धड़कता रहा
वो बराबर मुझे ही तकता रहा
रोशनी सारी रात कम ना हुई
तारा पलकों पे इक चमकता रहा
छू गया जब कभी ख़याल तेरा
दिल मेरा देर तक धड़कता रहा
कल तेरा ज़िक्र छिड़ गया घर में
और घर देर तक महकता रहा
उसके दिल में तो कोई मैल न था
मैं ख़ुदा जाने क्यूँ झिझकता रहा
मीर को पढ़ते पढ़ते सोया था
रात भर नींद में सिसकता रहा