Shayari Page
GHAZAL

दिल बुरी तरह से धड़कता रहा

दिल बुरी तरह से धड़कता रहा

वो बराबर मुझे ही तकता रहा

रोशनी सारी रात कम ना हुई

तारा पलकों पे इक चमकता रहा

छू गया जब कभी ख़याल तेरा

दिल मेरा देर तक धड़कता रहा

कल तेरा ज़िक्र छिड़ गया घर में

और घर देर तक महकता रहा

उसके दिल में तो कोई मैल न था

मैं ख़ुदा जाने क्यूँ झिझकता रहा

मीर को पढ़ते पढ़ते सोया था

रात भर नींद में सिसकता रहा

Comments

Loading comments…