चमकते लफ़्ज़ सितारों से छीन लाए हैं
चमकते लफ़्ज़ सितारों से छीन लाए हैं
हम आसमाँ से ग़ज़ल की ज़मीन लाए हैं

@rahat-indori
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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चमकते लफ़्ज़ सितारों से छीन लाए हैं
हम आसमाँ से ग़ज़ल की ज़मीन लाए हैं
सबब वो पूछ रहे हैं उदास होने का
मिरा मिज़ाज नहीं बे-लिबास होने का
मुझे डुबो के बहुत शर्मसार रहती है
वो एक मौज जो दरिया के पार रहती है
अपने दीवार-ओ-दर से पूछते हैं
घर के हालात घर से पूछते हैं
वो इक इक बात पे रोने लगा था
समुंदर आबरू खोने लगा था
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सँभलते क्यूँ हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं
दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं
सब अपने चेहरों पे दोहरी नक़ाब रखते हैं
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
काम सब ग़ैर-ज़रूरी हैं जो सब करते हैं
और हम कुछ नहीं करते हैं ग़ज़ब करते हैं
अब अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ
मैं चाहता था चराग़ों को आफ़्ताब करूँ
ज़बाँ तो खोल नज़र तो मिला जवाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूँ मुझे हिसाब तो दे
सियासत में ज़रूरी है रवादारी समझता है
वो रोज़ा तो नहीं रखता पर इफ्तारी समझता है
मुझ में कितने राज़ हैं बतलाऊँ क्या
बंद एक मुद्दत से हूँ खुल जाऊँ क्या
बचा के रक्खी थी कुछ रौशनी ज़माने से
हवा चराग़ उड़ा ले गयी सिराहने से
अब जो बाज़ार में रखे हैं तो हैरत क्या है
जो भी देखेगा वो पूछेगा के क़ीमत क्या है
झूठ से, सच से, जिससे भी यारी रखें
आप तो अपनी तक़रीर जारी रखें
रास्ते में फिर वही पैरों का चक्कर आ गया
जनवरी गुज़रा नहीं था और दिसंबर आ गया
ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई माँगे
जो हो परदेस में वो किससे रजाई माँगे
सब को रुस्वा बारी बारी किया करो
हर मौसम में फ़तवे जारी किया करो