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GHAZAL

सियासत में ज़रूरी है रवादारी समझता है

सियासत में ज़रूरी है रवादारी समझता है

वो रोज़ा तो नहीं रखता पर इफ्तारी समझता है

मैं साँसें तक लुटा सकता हूँ उसके एक इशारे पर

मगर वो मेरे हर वादे को सरकारी समझता है

कसीदा किस तरह लिखना कसीदा किस तरह पढ़ना

वो कुछ समझे ना समझे रागदरबारी समझता है

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सियासत में ज़रूरी है रवादारी समझता है — Rahat Indori • ShayariPage