बचा के रक्खी थी कुछ रौशनी ज़माने से

बचा के रक्खी थी कुछ रौशनी ज़माने से

हवा चराग़ उड़ा ले गयी सिराहने से

नसीहतें ना करो इश्क़ करने वालों को

ये आग और भड़क जायेगी बुझाने से

बहकते रहने की आदत है मेरे क़दमों को

शराबखाने से निकलू की चायखाने से