Shayari Page
GHAZAL

बचा के रक्खी थी कुछ रौशनी ज़माने से

बचा के रक्खी थी कुछ रौशनी ज़माने से

हवा चराग़ उड़ा ले गयी सिराहने से

नसीहतें ना करो इश्क़ करने वालों को

ये आग और भड़क जायेगी बुझाने से

बहकते रहने की आदत है मेरे क़दमों को

शराबखाने से निकलू की चायखाने से

Comments

Loading comments…
बचा के रक्खी थी कुछ रौशनी ज़माने से — Rahat Indori • ShayariPage