मैं अहमियत भी समझता हूँ क़हक़हों की मगर
मैं अहमियत भी समझता हूँ क़हक़हों की मगर
मज़ा कुछ अपना अलग है उदास होने का

@rahat-indori
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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मैं अहमियत भी समझता हूँ क़हक़हों की मगर
मज़ा कुछ अपना अलग है उदास होने का
ऐ वतन इक रोज़ तेरी ख़ाक में खो जाएँगे सो जाएँगे
मर के भी रिश्ता नहीं छूटेगा हिंदुस्तान से ईमान से
गुज़िश्ता साल के ज़ख़्मो हरे-भरे रहना
जुलूस अब के बरस भी यहीं से निकलेगा
मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भँवर है जिस की
तुमने अच्छा ही किया मुझ से किनारा कर के
साथ चलना है तो तलवार उठा मेरी तरह
मुझसे बुज़दिल की हिमायत नहीं होने वाली
माँ के क़दमों के निशाँ हैं कि दिए रौशन हैं
ग़ौर से देख यहीं पर कहीं जन्नत होगी
रास्ते में फिर वही पैरों का चक्कर आ गया
जनवरी गुज़रा नहीं था और दिसंबर आ गया
जनाज़े पर मेरे लिख देना यारों
मोहब्बत करने वाला जा रहा है
हाथ खाली है तेरे शहर से जाते जाते
जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते
दो गज़ सही मगर ये मेरी मिल्कियत तो है
ऐ मौत तूने मुझे ज़मींदार कर दिया
वो हिंदू, मैं मुस्लिम, ये सिक्ख, वो ईसाई
यार ये सब सियासत है चलो इश्क़ करें
मैं जब मर जाऊँ तो मेरी अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना
दिल्ली से हम ही बोला करें अम्न की बोली
यारो तुम भी कभी लाहौर से बोलो
दिन ढल गया और रात गुज़रने की आस में
सूरज नदी में डूब गया, हम गिलास में
किसने दस्तक दी ये दिल पर कौन है
आप तो अंदर हैं बाहर कौन है
प्यास अगर मेरी बुझा दे तो मैं जानू वरना
तू समंदर है तो होगा मेरे किस काम का है
जो दुनिया को सुनाई दे उसे कहते हैं ख़ामोशी
जो आँखों में दिखाई दे उसे तूफ़ान कहते हैं
गुलाब ख़्वाब दवा ज़हर जाम क्या क्या है
मैं आ गया हूँ बता इंतिज़ाम क्या क्या है
तूफ़ानों से आँख मिलाओ सैलाबों पे वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो तैर के दरिया पार करो
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सँभलते क्यूँ हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं