देखो देखो जानम हम दिल अपना तेरे लिए लाए
देखो देखो जानम हम दिल अपना तेरे लिए लाए
सोचो सोचो दुनिया में क्यूँ आए तेरे लिए आए

@rahat-indori
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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देखो देखो जानम हम दिल अपना तेरे लिए लाए
सोचो सोचो दुनिया में क्यूँ आए तेरे लिए आए
अब न मैं वो हूँ न बाकी हैं ज़माने मेरे
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे
मैं साँसें तक लुटा सकता हूँ उसके इक इशारे पर
मगर वो मेरे हर वादे को सरकारी समझता है
चराग़ों को उछाला जा रहा है
हवा पर रौब डाला जा रहा है
अपने हाकिम की फ़कीरी पे तरस आता है
जो ग़रीबों से पसीने की कमाई माँगे
कई दिनों से अँधेरों का बोलबाला है
चराग़ ले के पुकारो कहाँ उजाला है
झूठों ने झूठों से कहा है सच बोलो
सरकारी एलान हुआ है सच बोलो
मेरे हुजरे में नहीं और कहीं पर रख दो
आसमाँ लाए हो ले आओ ज़मीं पर रख दो
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
दिल के बाज़ार में बैठे हैं ख़सारा कर के
ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई माँगे
जो हो परदेस में वो किससे रज़ाई माँगे
मैं पर्वतों से लड़ता रहा और चंद लोग
गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए
मैं अँधेरों से बचा लाया था अपने आप को
मेरा दुख ये है मिरे पीछे उजाले पड़ गए
सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवक़ूफ़
सारे सिपाही मोम के थे घुल के आ गए
सफ़र में आख़िरी पत्थर के बाद आएगा
मज़ा तो यार दिसंबर के बाद आएगा
मुन्तज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे
चाँद को छत पे बुला लूँगा इशारा कर के
ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे
हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ
यहाँ हमदर्द हैं दो-चार मेरे