रास्ते में फिर वही पैरों का चक्कर आ गया

रास्ते में फिर वही पैरों का चक्कर आ गया

जनवरी गुज़रा नहीं था और दिसंबर आ गया

ये शरारत है, सियासत है, के है साज़िश कोई

शाख़ पर फल आयें इससे पहले पत्थर आ गया

मैने कुछ पानी बचा रखा था अपनी आँख में

एक समंदर अपने सूखे होंठ लेकर आ गया

अपने दरवाज़े पे मैंने पहले खुद आवाज़ दी

और फिर कुछ देर में खुद ही निकल कर आ गया

मैने बस्ती में कदम रखा तो यू लगा

जैसे जंगल मेरे पैरो से लिपट कर आ गया

पांव के ठोकर में जिस के तेरे तख्तों ताज है

शाह से जा कर कोई कह दे कलंदर आ गया