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GHAZAL

ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई माँगे

ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई माँगे

जो हो परदेस में वो किससे रजाई माँगे

अपने हाकिम की फ़क़ीरी पर तरस आता है

जो ग़रीबों से पसीने की कमाई माँगे

अपने मुंसिफ़ की ज़िहानत पे मैं क़ुर्बान कि जो

क़त्ल भी हम हो हमीं से ही वो सफाई माँगे

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