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GHAZAL

वो इक इक बात पे रोने लगा था

वो इक इक बात पे रोने लगा था

समुंदर आबरू खोने लगा था

लगे रहते थे सब दरवाज़े फिर भी

मैं आँखें खोल कर सोने लगा था

चुराता हूँ अब आँखें आइनों से

ख़ुदा का सामना होने लगा था

वो अब आईने धोता फिर रहा है

उसे चेहरे पे शक होने लगा था

मुझे अब देख कर हँसती है दुनिया

मैं सब के सामने रोने लगा था

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वो इक इक बात पे रोने लगा था — Rahat Indori • ShayariPage