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GHAZAL

तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के

तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के

दिल के बाज़ार में बैठे हैं ख़सारा कर के

आते जाते हैं कई रंग मेरे चेहरे पर

लोग लेते हैं मज़ा ज़िक्र तुम्हारा कर के

एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे

वो अलग हट गया आँधी को इशारा कर के

आसमानों की तरफ़ फेंक दिया है मैंने

चंद मिट्टी के चराग़ों को सितारा कर के

मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भँवर है जिसकी

तुम ने अच्छा ही किया मुझ से किनारा कर के

मुंतज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे

चाँद को छत पे बुला लूँगा इशारा कर के

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