सिसकती रुत को महकता गुलाब कर दूँगा
सिसकती रुत को महकता गुलाब कर दूँगा
मैं इस बहार में सब का हिसाब कर दूँगा
मैं इंतिज़ार में हूँ तू कोई सवाल तो कर
यक़ीन रख मैं तुझे ला-जवाब कर दूँगा
हज़ार पर्दों में ख़ुद को छुपा के बैठ मगर
तुझे कभी न कभी बे-नक़ाब कर दूँगा
मुझे भरोसा है अपने लहू के क़तरों पर
मैं नेज़े नेज़े को शाख़-ए-गुलाब कर दूँगा
मुझे यक़ीन कि महफ़िल की रौशनी हूँ मैं
उसे ये ख़ौफ़ कि महफ़िल ख़राब कर दूँगा
मुझे गिलास के अंदर ही क़ैद रख वर्ना
मैं सारे शहर का पानी शराब कर दूँगा
महाजनों से कहो थोड़ा इंतिज़ार करें
शराब-ख़ाने से आ कर हिसाब कर दूँगा