सूखी टहनी तन्हा चिड़िया फीका चाँद
सूखी टहनी तन्हा चिड़िया फीका चाँद
आँखों के सहरा में एक नमी का चाँद

@javed-akhtar
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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सूखी टहनी तन्हा चिड़िया फीका चाँद
आँखों के सहरा में एक नमी का चाँद
न ख़ुशी दे तो कुछ दिलासा दे
दोस्त जैसे हो मुझ को बहला दे
ये मुझ से पूछते हैं चारागर क्यूँ
कि तू ज़िंदा तो है अब तक मगर क्यूँ
दस्त-बरदार अगर आप ग़ज़ब से हो जाएँ
हर सितम भूल के हम आप के अब से हो जाएँ
यक़ीन का अगर कोई भी सिलसिला नहीं रहा
तो शुक्र कीजिए कि अब कोई गिला नहीं रहा
निगल गए सब की सब समुंदर ज़मीं बची अब कहीं नहीं है
बचाते हम अपनी जान जिस में वो कश्ती भी अब कहीं नहीं है
मैं पा सका न कभी इस ख़लिश से छुटकारा
वो मुझ से जीत भी सकता था जाने क्यूँ हारा
दिल में महक रहे हैं किसी आरज़ू के फूल
पलकों पे खिलने वाले हैं शायद लहू के फूल
प्यास की कैसे लाए ताब कोई
नहीं दरिया तो हो सराब कोई
दर्द कुछ दिन तो मेहमाँ ठहरे
हम ब-ज़िद हैं कि मेज़बाँ ठहरे
जो बात कहते डरते हैं सब तू वो बात लिख
इतनी अँधेरी थी न कभी पहले रात लिख
क्यूँ डरें ज़िन्दगी में क्या होगा
कुछ न होगा तो तजरबा होगा
मैं ख़ुद भी सोचता हूं ये क्या मेरा हाल है
जिस का जवाब चाहिए वो क्या सवाल है
जब आईना कोई देखो इक अजनबी देखो
कहाँ पे लाई है तुम को ये ज़िंदगी देखो
सच ये है बे-कार हमें ग़म होता है
जो चाहा था दुनिया में कम होता है
वो ज़माना गुज़र गया कब का
था जो दीवाना मर गया कब का
दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग
जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग
खुला है दर प तिरा इंतिज़ार जाता रहा
ख़ुलूस तो है मगर एतिबार जाता रहा
सारी हैरत है मिरी सारी अदा उस की है
बे-गुनाही है मिरी और सज़ा उस की है
दिल का हर दर्द खो गया जैसे
मैं तो पत्थर का हो गया जैसे