Shayari Page
GHAZAL

निगल गए सब की सब समुंदर ज़मीं बची अब कहीं नहीं है

निगल गए सब की सब समुंदर ज़मीं बची अब कहीं नहीं है

बचाते हम अपनी जान जिस में वो कश्ती भी अब कहीं नहीं है

बहुत दिनों बा'द पाई फ़ुर्सत तो मैं ने ख़ुद को पलट के देखा

मगर मैं पहचानता था जिस को वो आदमी अब कहीं नहीं है

गुज़र गया वक़्त दिल पे लिख कर न जाने कैसी अजीब बातें

वरक़ पलटता हूँ मैं जो दिल के तो सादगी अब कहीं नहीं है

वो आग बरसी है दोपहर में कि सारे मंज़र झुलस गए हैं

यहाँ सवेरे जो ताज़गी थी वो ताज़गी अब कहीं नहीं है

तुम अपने क़स्बों में जा के देखो वहाँ भी अब शहर ही बसे हैं

कि ढूँढते हो जो ज़िंदगी तुम वो ज़िंदगी अब कहीं नहीं है

Comments

Loading comments…