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GHAZAL

दिल का हर दर्द खो गया जैसे

दिल का हर दर्द खो गया जैसे

मैं तो पत्थर का हो गया जैसे

दाग़ बाक़ी नहीं कि नक़्श कहूँ

कोई दीवार धो गया जैसे

जागता ज़ेहन ग़म की धूप में था

छाँव पाते ही सो गया जैसे

देखने वाला था कल उस का तपाक

फिर से वो ग़ैर हो गया जैसे

कुछ बिछड़ने के भी तरीक़े हैं

ख़ैर जाने दो जो गया जैसे

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