ग़म होते हैं जहाँ ज़ेहानत होती है
ग़म होते हैं जहाँ ज़ेहानत होती है
दुनिया में हर शय की क़ीमत होती है

@javed-akhtar
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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ग़म होते हैं जहाँ ज़ेहानत होती है
दुनिया में हर शय की क़ीमत होती है
मैं कब से कितना हूँ तन्हा तुझे पता भी नहीं
तिरा तो कोई ख़ुदा है मिरा ख़ुदा भी नहीं
हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे
ये तसल्ली है कि हैं नाशाद सब
मैं अकेला ही नहीं बर्बाद सब
दर्द अपनाता है पराए कौन
कौन सुनता है और सुनाए कौन
ये दुनिया तुम को रास आए तो कहना
न सर पत्थर से टकराए तो कहना
कल जहाँ दीवार थी है आज इक दर देखिए
क्या समाई थी भला दीवाने के सर देखिए
यही हालात इब्तिदा से रहे
लोग हम से ख़फ़ा ख़फ़ा से रहे
दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं
ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं
आज मैंने अपना फिर सौदा किया
और फिर मैं दूर से देखा किया
हमारे शौक़ की ये इंतिहा थी
क़दम रक्खा कि मंज़िल रास्ता थी
ज़रा मौसम तो बदला है मगर पेड़ों की शाख़ों पर नए पत्तों के आने में अभी कुछ दिन लगेंगे
बहुत से ज़र्द चेहरों पर ग़ुबार-ए-ग़म है कम बे-शक पर उन को मुस्कुराने में अभी कुछ दिन लगेंगे
अभी ज़मीर में थोड़ी सी जान बाक़ी है
अभी हमारा कोई इम्तिहान बाक़ी है
मुझ को यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं
कभी कभी मैं ये सोचता हूँ कि मुझ को तेरी तलाश क्यूँ है
कि जब हैं सारे ही तार टूटे तो साज़ में इर्तिआश क्यूँ है
बहाना ढूँडते रहते हैं कोई रोने का
हमें ये शौक़ है क्या आस्तीं भिगोने का
जीना मुश्किल है कि आसान ज़रा देख तो लो
लोग लगते हैं परेशान ज़रा देख तो लो
याद उसे भी एक अधूरा अफ़्साना तो होगा
कल रस्ते में उस ने हम को पहचाना तो होगा
जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता