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GHAZAL

मैं कब से कितना हूँ तन्हा तुझे पता भी नहीं

मैं कब से कितना हूँ तन्हा तुझे पता भी नहीं

तिरा तो कोई ख़ुदा है मिरा ख़ुदा भी नहीं

कभी ये लगता है अब ख़त्म हो गया सब कुछ

कभी ये लगता है अब तक तो कुछ हुआ भी नहीं

कभी तो बात की उस ने कभी रहा ख़ामोश

कभी तो हँस के मिला और कभी मिला भी नहीं

कभी जो तल्ख़-कलामी थी वो भी ख़त्म हुई

कभी गिला था हमें उन से अब गिला भी नहीं

वो चीख़ उभरी बड़ी देर गूँजी डूब गई

हर एक सुनता था लेकिन कोई हिला भी नहीं

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मैं कब से कितना हूँ तन्हा तुझे पता भी नहीं — Javed Akhtar • ShayariPage