क्यूँ मेरे साथ कोई और परेशान रहे
क्यूँ मेरे साथ कोई और परेशान रहे
मेरी दुनिया है जो वीरान तो वीरान रहे

@javed-akhtar
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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क्यूँ मेरे साथ कोई और परेशान रहे
मेरी दुनिया है जो वीरान तो वीरान रहे
हमें जब से मोहब्बत हो गई है
ये दुनिया ख़ूबसूरत हो गई है
ये ज़िंदगी भी अजब कारोबार है कि मुझे
ख़ुशी है पाने की कोई न रंज खोने का
क्यों डरें ज़िन्दगी में क्या होगा
कुछ न होगा तो तजरबा होगा
वो ज़माना गुज़र गया कब का
था जो दीवाना मर गया कब का
नेकी इक दिन काम आती है हम को क्या समझाते हो
हम ने बे-बस मरते देखे कैसे प्यारे प्यारे लोग
मुझे मायूस भी करती नहीं है
यही आदत तिरी अच्छी नहीं है
फिर ख़मोशी ने साज़ छेड़ा है
फिर ख़यालात ने ली अँगड़ाई
मैं क़त्ल तो हो गया तुम्हारी गली में लेकिन
मिरे लहू से तुम्हारी दीवार गल रही है
ख़ून से सींची है मैं ने जो ज़मीं मर मर के
वो ज़मीं एक सितम-गर ने कहा उस की है
मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है
मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ
कल जहाँ दीवार थी है आज इक दर देखिए
क्या समाई थी भला दीवाने के सर देखिए
सब का ख़ुशी से फ़ासला एक क़दम है
हर घर में बस एक ही कमरा कम है
अगर पलक पे है मोती तो ये नहीं काफ़ी
हुनर भी चाहिए अल्फ़ाज़ में पिरोने का
मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था
मिरे अंजाम की वो इब्तिदा थी
तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूँ फिर भी शायद
निकल आए कोई पहचान ज़रा देख तो लो
तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे
अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती है
याद उसे भी एक अधूरा अफ़्साना तो होगा
कल रस्ते में उस ने हम को पहचाना तो होगा
मैं पा सका न कभी इस ख़लिश से छुटकारा
वो मुझ से जीत भी सकता था जाने क्यूँ हारा
धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है
न पूरे शहर पर छाए तो कहना