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तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूँ फिर भी शायद

तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूँ फिर भी शायद

निकल आए कोई पहचान ज़रा देख तो लो

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तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूँ फिर भी शायद — Javed Akhtar • ShayariPage