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मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है

मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है

मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ

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मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है — Javed Akhtar • ShayariPage