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GHAZAL

बहाना ढूँडते रहते हैं कोई रोने का

बहाना ढूँडते रहते हैं कोई रोने का

हमें ये शौक़ है क्या आस्तीं भिगोने का

अगर पलक पे है मोती तो ये नहीं काफ़ी

हुनर भी चाहिए अल्फ़ाज़ में पिरोने का

जो फ़स्ल ख़्वाब की तय्यार है तो ये जानो

कि वक़्त आ गया फिर दर्द कोई बोने का

ये ज़िंदगी भी अजब कारोबार है कि मुझे

ख़ुशी है पाने की कोई न रंज खोने का

है पाश पाश मगर फिर भी मुस्कुराता है

वो चेहरा जैसे हो टूटे हुए खिलौने का

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बहाना ढूँडते रहते हैं कोई रोने का — Javed Akhtar • ShayariPage