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GHAZAL

मैं ख़ुद भी सोचता हूं ये क्या मेरा हाल है

मैं ख़ुद भी सोचता हूं ये क्या मेरा हाल है

जिस का जवाब चाहिए वो क्या सवाल है

घर से चला तो दिल के सिवा पास कुछ न था

क्या मुझ से खो गया है मुझे क्या मलाल है

आसूदगी से दल के सभी दाग़ धुल गए

लेकिन वो कैसे जाए जो शीशे में बाल है

बे-दस्त-ओ-पा हूं आज तो इल्ज़ाम किस को दूं

कल मैं ने ही बुना था ये मेरा ही जाल है

फिर कोई ख़्वाब देखूं कोई आरज़ू करूं

अब ऐ दिल-ए-तबाह तिरा क्या ख़याल है

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मैं ख़ुद भी सोचता हूं ये क्या मेरा हाल है — Javed Akhtar • ShayariPage