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GHAZAL

सूखी टहनी तन्हा चिड़िया फीका चाँद

सूखी टहनी तन्हा चिड़िया फीका चाँद

आँखों के सहरा में एक नमी का चाँद

उस माथे को चूमे कितने दिन बीते

जिस माथे की ख़ातिर था इक टीका चाँद

पहले तू लगती थी कितनी बेगाना

कितना मुबहम होता है पहली का चाँद

कम हो कैसे इन ख़ुशियों से तेरा ग़म

लहरों में कब बहता है नद्दी का चाँद

आओ अब हम इस के भी टुकड़े कर ले

ढाका रावलपिंडी और दिल्ली का चाँद

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