मेरा ख़ज़ाना ज़माने के हाथ जा न लगे
मेरा ख़ज़ाना ज़माने के हाथ जा न लगे
तुझे किसी की किसी को तेरी हवा न लगे

@jawwad-sheikh
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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मेरा ख़ज़ाना ज़माने के हाथ जा न लगे
तुझे किसी की किसी को तेरी हवा न लगे
तो क्या ये आख़िरी ख़्वाहिश है अच्छा भूल जाऊँ
जहाँ भी जो भी है तेरे अलावा भूल जाऊँ
तो क्या इक हमारे लिए ही मोहब्बत नया तजरबा है
जिसे पूछिए वो कहेगा कि जी हाँ बड़ा तजरबा है
दरगुज़र जितना किया है वही काफ़ी है मुझे
अब तुझे क़त्ल भी कर दूँ तो मुआफ़ी है मुझे
करेगा क्या कोई मेरे गले-सड़े आँसू
तो क्यूँ न सूख ही जाएँ पड़े पड़े आँसू
इश्क़ ने जब भी किसी दिल पे हुकूमत की है
तो उसे दर्द की मेराज इनायत की है
नहीं ऐसा भी कि यकसर नहीं रहने वाला
दिल में ये शोर बराबर नहीं रहने वाला
मिरे हवास पे हावी रही कोई कोई बात
कि ज़िंदगी से सिवा ख़ास थी कोई कोई बात
नहीं कि पंद-ओ-नसीहत का क़हत पड़ गया है
हमारी बात में बरकत का क़हत पड़ गया है
हज़ार सहरा थे रस्ते में यार क्या करता
जो चल पड़ा था तो फ़िक्र-ए-ग़ुबार क्या करता
जो भी जीने के सिलसिले किए थे
हम ने बस आप के लिए किए थे
दाद तो बाद में कमाएँगे
पहले हम सोचना सिखाएँगे
उस ने कोई तो दम पढ़ा हुआ है
जिस ने देखा वो मुब्तला हुआ है
कहाँ हटता है निगाहों से हटाए हाए
वही मंज़र कि जिसे देख न पाए हाए
ग़म-ए-जहाँ से मैं उकता गया तो क्या होगा
ख़ुद अपनी फ़िक्र में घुलने लगा तो क्या होगा
न सही ऐश गुज़ारा ही सही
यानी गर तू नहीं दुनिया ही सही
मैं चाहता हूँ कि दिल में तिरा ख़याल न हो
अजब नहीं कि मिरी ज़िंदगी वबाल न हो
इधर ये हाल कि छूने का इख़्तियार नहीं
उधर वो हुस्न कि आँखों पे ए'तिबार नहीं
ये वहम जाने मेरे दिल से क्यूँ निकल नहीं रहा
कि उस का भी मिरी तरह से जी सँभल नहीं रहा
मौला किसी को ऐसा मुक़द्दर न दीजियो
दिलबर नहीं तो फिर कोई दीगर न दीजियो