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GHAZAL

मिरे हवास पे हावी रही कोई कोई बात

मिरे हवास पे हावी रही कोई कोई बात

कि ज़िंदगी से सिवा ख़ास थी कोई कोई बात

ये और बात कि महसूस तक न होने दूँ

जकड़ सी लेती है दिल को तिरी कोई कोई बात

कोई भी तुझ सा मुझे हू-ब-हू कहीं न मिला

किसी किसी में अगरचे मिली कोई कोई बात

ख़ुशी हुई कि मुलाक़ात राएगाँ न गई

उसे भी मेरी तरह याद थी कोई कोई बात

बदन में ज़हर के मानिंद फैल जाती है

दिलों में ख़ौफ़ से सहमी हुई कोई कोई बात

कभी समझ नहीं पाए कि उस में क्या है मगर

चली तो ऐसे कि बस चल पड़ी कोई कोई बात

वज़ाहतों में उलझ कर यही खिला 'जव्वाद'

ज़रूरी है कि रहे अन-कही कोई कोई बात

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