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GHAZAL

जो भी जीने के सिलसिले किए थे

जो भी जीने के सिलसिले किए थे

हम ने बस आप के लिए किए थे

तब कहीं जा के अपनी मर्ज़ी की

पहले अपनों से मशवरे किए थे

कभी उस की निगह मयस्सर थी

कैसे कैसे मुशाहिदे किए थे

अक़्ल कुछ और कर के बैठ रही

इश्क़ ने और फ़ैसले किए थे

बात हम ने सुनी हुई सुनी थी

काम उस ने किए हुए किए थे

उसे भी एक ख़त लिखा गया था

अपने आगे भी आइने किए थे

यहाँ कुछ भी नहीं है मेरे लिए

तू ने क्या क्या मुबालग़े किए थे

अव्वल आने का शौक़ था लेकिन

काम सारे ही दूसरे किए थे

बड़ी मुश्किल थी वो घड़ी 'जव्वाद'

हम ने कब ऐसे फ़ैसले किए थे

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