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GHAZAL

मेरा ख़ज़ाना ज़माने के हाथ जा न लगे

मेरा ख़ज़ाना ज़माने के हाथ जा न लगे

तुझे किसी की किसी को तेरी हवा न लगे

मैं एक जिस्म को चखना तो चाहता हूँ मगर

कुछ इस तरह कि मेरे मुँह को ज़ाएका न लगे

हमें लगा सो लगा ख़ुद-अज़िय्यती का नशा

दुआ करो कि तुम्हें बद्दुआ दुआ न लगे

दुआ करो कि किसी का न दिल लगे तुमसे

लगे तो और किसी से लगा हुआ न लगे

हसद किया हो तेरे रिज़्क़ से कभी मैंने

तो मुझको अपनी कमाई हुई ग़िज़ा न लगे

हमें ही इश्क़ की तशहीर चाहिए वरना

पता न लगने दिया जाए तो पता न लगे

पड़ा रहा मैं किसी और ही बखेड़े में

बहुत से क़ीमती जज़्बे किसी दिशा न लगे

बना रहा हूँ तसव्वुर में एक मुद्दत से

एक ऐसा शहर जिसे कोई रास्ता न लगे

हमें तो उससे मुहब्बत है और बेहद है

अगर उसे नहीं लगता तो क्या हुआ न लगे

किसे ख़ुशी नहीं होती सराहे जाने की

मगर वो दोस्त ही क्या है जो आइना न लगे

कभी कभार जो रखने लगे ज़बाँ का भरम

वो अब भी क्या नहीं लगता मजीद क्या न लगे

यही कहूँगा कि 'जव्वाद' बच बचा के ज़रा

अगर किसी का रवैया बरादरा न लगे

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मेरा ख़ज़ाना ज़माने के हाथ जा न लगे — Jawwad Sheikh • ShayariPage