किसी के सर्द रवय्ये पे ख़ामुशी का लिहाफ़
किसी के सर्द रवय्ये पे ख़ामुशी का लिहाफ़
ये इंतिक़ाम भी क्या इंतिक़ाम होता है

@jawwad-sheikh
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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किसी के सर्द रवय्ये पे ख़ामुशी का लिहाफ़
ये इंतिक़ाम भी क्या इंतिक़ाम होता है
मैं ऐसी उम्र से दुख झेलने लगा 'जव्वाद'
जो आम तौर पे होती है खेलने वाली
ख़ुद को मसरूफ़ किए रखने की कोशिश करना
क्या तेरी याद के ज़ुमरे में नहीं आता है
अब हमें देख के लगता तो नहीं है लेकिन
हम कभी उसके पसंदीदा हुआ करते थे
हमें तो उस से मोहब्बत है और बेहद है
अगर उसे नहीं लगता तो क्या हुआ न लगे
तुम अगर सीखना चाहो मुझे बतला देना
आम सा फ़न तो कोई है नहीं तोहफ़ा देना
मैं किसी तरह भी समझौता नहीं कर सकता
या तो सब कुछ ही मुझे चाहिए या कुछ भी नहीं
किताब फ़िल्म सफ़र इश्क़ शाइरी औरत
कहाँ कहाँ न गया ख़ुद को ढूँढता हुआ मैं
मैं इस ख़याल से जाते हुए उसे न मिला
कि रोक लें न कहीं सामने खड़े आँसू
कैसे किसी की याद हमें ज़िंदा रखती है
एक ख़याल सहारा कैसे हो सकता है
मैं चाहता हूँ मोहब्बत मुझे फ़ना कर दे
फ़ना भी ऐसा कि जिस की कोई मिसाल न हो
अब मिरा ध्यान कहीं और चला जाता है
अब कोई फ़िल्म मुकम्मल नहीं देखी जाती
लग रहा है ये नर्म लहजे से
फिर तुझे कोई मसअला हुआ है
टूटने पर कोई आए तो फिर ऐसा टूटे
कि जिसे देख के हर देखने वाला टूटे
क्या है जो हो गया हूँ मैं थोड़ा बहुत ख़राब
थोड़ा बहुत ख़राब तो होना भी चाहिए
मैं अब किसी की भी उम्मीद तोड़ सकता हूँ
मुझे किसी पे भी अब कोई ए'तिबार नहीं
ये नहीं है कि वो एहसान बहुत करता है
अपने एहसान का एलान बहुत करता है
कोई इतना प्यारा कैसे हो सकता है
फिर सारे का सारा कैसे हो सकता है
अपने सामान को बाँधे हुए इस सोच में हूँ
जो कहीं के नहीं रहते वो कहाँ जाते हैं
सब को बचाओ ख़ुद भी बचो फ़ासला रखो
अब और कुछ करो न करो फ़ासला रखो