इश्क़ ने जब भी किसी दिल पे हुकूमत की है

इश्क़ ने जब भी किसी दिल पे हुकूमत की है

तो उसे दर्द की मेराज इनायत की है

अपनी ताईद पे ख़ुद अक़्ल भी हैरान हुई

दिल ने ऐसे मिरे ख़्वाबों की हिमायत की है

शहर-ए-एहसास तिरी याद से रौशन कर के

मैं ने हर घर में तिरे ज़िक्र की जुरअत की है

मुझ को लगता है कि इंसान अधूरा है अभी

तू ने दुनिया में उसे भेज के उजलत की है

शहर के तीरा-तरीं घर से वो ख़ुर्शीद मिला

जिस की तनवीर में तासीर क़यामत की है

सोचता हूँ कि मैं ऐसे में किधर को जाऊँ

तेरा मिलना भी कठिन, याद भी शिद्दत की है

इस तरह औंधे पड़े हैं ये शिकस्ता जज़्बे

जैसे इक वहम ने इन सब की इमामत की है

ये जो बिखरी हुई लाशें हैं वरक़ पर 'जव्वाद'

ये मिरे ज़ब्त से लफ़्ज़ों ने बग़ावत की है