नहीं कि पंद-ओ-नसीहत का क़हत पड़ गया है

नहीं कि पंद-ओ-नसीहत का क़हत पड़ गया है

हमारी बात में बरकत का क़हत पड़ गया है

तो फिर ये रद्द-ए-मुनाजात की नहूसत क्यूँ

कभी सुना कि इबादत का क़हत पड़ गया है?

मलाल ये है कि इस पर कोई मलूल नहीं

हमारे शहर में हैरत का क़हत पड़ गया है

सुख़न का खोखला होना समझ से बाहर था

खुला कि हर्फ़ की हुर्मत का क़हत पड़ गया है

कहीं कहीं नज़र आए तो आए मिस्रा-ए-तर

नहीं तो शेर में लज़्ज़त का क़हत पड़ गया है

नसीब दिल को भला कब रही फ़रावानी

और अब तो वैसे भी मुद्दत का क़हत पड़ गया है

मगर अब ऐसी भी कोई अंधेर-नगरी नहीं

ये ठीक है कि मोहब्बत का क़हत पड़ गया है

नहीं मैं सिर्फ़ ब-ज़ाहिर नहीं हुआ वीरान

दरून-ए-ज़ात भी शिद्दत का क़हत पड़ गया है

कहाँ गईं मिरे गाँव की रौनक़ें 'जव्वाद'

तो क्या यहाँ भी रिवायत का क़हत पड़ गया है