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GHAZAL

तो क्या ये आख़िरी ख़्वाहिश है अच्छा भूल जाऊँ

तो क्या ये आख़िरी ख़्वाहिश है अच्छा भूल जाऊँ

जहाँ भी जो भी है तेरे अलावा भूल जाऊँ

तो क्या ये दूसरा ही इश्क़ असली इश्क़ समझूँ

तो पहला तजरबे की देन में था भूल जाऊँ

तो क्या इतना ही आसाँ है किसी को भूल जाना

कि बस बातों ही बातों में भुलाता भूल जाऊँ

कभी कहता हूँ उसको याद रखना ठीक होगा

मगर फिर सोचता हूँ फ़ाएदा क्या भूल जाऊँ

ये कोई क़त्ल थोड़ी है कि बात आई गई हो

मैं और अपना नज़र-अंदाज़ होना भूल जाऊँ

है इतनी जुज़इयात इस सानहे की पूछिए मत

मैं क्या क्या याद रक्खूँ और क्या क्या भूल जाऊँ

कोई कब तक किसी की बेवफ़ाई याद रक्खे

बहुत मुमकिन है मैं भी रफ़्ता रफ़्ता भूल जाऊँ

तो क्या ये कह के ख़ुद को मुतमइन कर लोगे 'जव्वाद'

कि वो है भी इसी लाइक़ लिहाज़ा भूल जाऊँ

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तो क्या ये आख़िरी ख़्वाहिश है अच्छा भूल जाऊँ — Jawwad Sheikh • ShayariPage