ये सात आठ पड़ोसी कहाँ से आए मेरे
ये सात आठ पड़ोसी कहाँ से आए मेरे
तुम्हारे दिल में तो कोई न था सिवाए मेरे

@umair-najmi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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ये सात आठ पड़ोसी कहाँ से आए मेरे
तुम्हारे दिल में तो कोई न था सिवाए मेरे
याद तब करते हो करने को न हो जब कुछ भी
और कहते हो तुम्हें इश्क़ है मतलब कुछ भी
बरसों पुराना दोस्त मिला जैसे ग़ैर हो
देखा रुका झिझक के कहा तुम उमैर हो
वो मुँह लगाता है जब कोई काम होता है
जो उसका होता है समझो ग़ुलाम होता है
बस इक उसी पे तो पूरी तरह अयाॅं हूॅं मैं
वो कह रहा है मुझे रायगाॅं तो हाँ हूॅं मैं
कहा जो मैंने ग़लत कर रही हो चुन के मुझे
अचानक उसने कहा चुप ये बात सुन के मुझे
बड़े तहम्मुल से रफ़्ता रफ़्ता निकालना है
बचा है जो तुझ में मेरा हिस्सा निकालना है
जहान भर की तमाम आँखें निचोड़ कर जितना नम बनेगा
ये कुल मिला कर भी हिज्र की रात मेरे गिर्ये से कम बनेगा
मिरी भँवों के ऐन दरमियान बन गया
जबीं पे इंतिज़ार का निशान बन गया
इक दिन ज़बाँ सुकूत की पूरी बनाऊँगा
मैं गुफ़्तुगू को ग़ैर-ज़रूरी बनाऊँगा
मुझे पहले तो लगता था कि ज़ाती मसअला है
मैं फिर समझा मोहब्बत काएनाती मसअला है
तुम इस ख़राबे में चार छे दिन टहल गई हो
सो ऐन-मुमकिन है दिल की हालत बदल गई हो
मैं ने जो राह ली दुश्वार ज़ियादा निकली
मेरे अंदाज़े से हर बार ज़ियादा निकली
कुछ सफ़ीने हैं जो ग़र्क़ाब इकट्ठे होंगे
आँख में ख़्वाब तह-ए-आब इकट्ठे होंगे
हर इक हज़ार में बस पाँच सात हैं हम लोग
निसाब-ए-इश्क़ पे वाजिब ज़कात हैं हम लोग
मैं बरश छोड़ चुका आख़िरी तस्वीर के बाद
मुझ से कुछ बन नहीं पाया तिरी तस्वीर के बाद
तुम इस ख़राबे में चार छे दिन टहल गई हो
सो ऐन-मुमकिन है दिल की हालत बदल गई हो
इक दिन ज़बाँ सुकूत की पूरी बनाऊँगा
मैं गुफ़्तुगू को ग़ैर-ज़रूरी बनाऊँगा
मैं ने जो राह ली दुश्वार ज़ियादा निकली
मेरे अंदाज़े से हर बार ज़ियादा निकली
कुछ सफ़ीने हैं जो ग़र्क़ाब इकट्ठे होंगे
आँख में ख़्वाब तह-ए-आब इकट्ठे होंगे