सब इंतजार में थे कब कोई ज़बान खुले
सब इंतजार में थे कब कोई ज़बान खुले
फिर उसके होंठ खुले और सबके कान खुले

@umair-najmi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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सब इंतजार में थे कब कोई ज़बान खुले
फिर उसके होंठ खुले और सबके कान खुले
तुझे ना आएंगी मुफ़लिस की मुश्किलात समझ
मैं छोटे लोगों के घर का बड़ा हूं बात समझ
तुम को वेहशत तो सीखा दी गुजारें लायक
और कोई हुक्म कोई काम हमारे लायक
झुक के चलता हूँ कि क़द उसके बराबर न लगे
दूसरा ये कि उसे राह में ठोकर न लगे
दाएँ बाज़ू में गड़ा तीर नहीं खींच सका
इस लिए ख़ोल से शमशीर नहीं खींच सका
जहान भर की तमाम आँखें निचोड़ कर जितना नम बनेगा
ये कुल मिला कर भी हिज्र की रात मेरे गिर्ये से कम बनेगा
मिरी भँवों के ऐन दरमियान बन गया
जबीं पे इंतिज़ार का निशान बन गया
खेल दोनों का चले तीन का दाना न पड़े
सीढ़ियाँ आती रहें साँप का ख़ाना न पड़े
एक तारीख़ मुक़र्रर पे तो हर माह मिले
जैसे दफ़्तर में किसी शख़्स को तनख़्वाह मिले
बड़े तहम्मुल से रफ़्ता रफ़्ता निकालना है
बचा है जो तुझ में मेरा हिस्सा निकालना है