GHAZAL•
तुम को वेहशत तो सीखा दी गुजारें लायक
By Umair Najmi
तुम को वेहशत तो सीखा दी गुजारें लायक
और कोई हुक्म कोई काम हमारे लायक
माजरत में तो किसी और के मसरफ में हुं
ढूंढ देता हु मगर कोई तुम्हारे लायक
एक दो ज़ख्मों की गहराई और आंखों के खंडर
और कुछ खास नहीं मुझ में नज़ारे लायक
घोंसला छाव हरा रंग समर कुछ भी नही
देख मुझ जैसे शजर होते है आरे लायक
इस इलाक़े में उजालों की जगह कोई नही
सिर्फ परचम है यहां चांद सितारे लायक
मुझ निक्कमे को चुना उस ने तरस खा के उमेर
देखते रह गए हसरत से बेचारे लायक