Shayari Page
GHAZAL

तुम को वेहशत तो सीखा दी गुजारें लायक

तुम को वेहशत तो सीखा दी गुजारें लायक

और कोई हुक्म कोई काम हमारे लायक

माजरत में तो किसी और के मसरफ में हुं

ढूंढ देता हु मगर कोई तुम्हारे लायक

एक दो ज़ख्मों की गहराई और आंखों के खंडर

और कुछ खास नहीं मुझ में नज़ारे लायक

घोंसला छाव हरा रंग समर कुछ भी नही

देख मुझ जैसे शजर होते है आरे लायक

इस इलाक़े में उजालों की जगह कोई नही

सिर्फ परचम है यहां चांद सितारे लायक

मुझ निक्कमे को चुना उस ने तरस खा के उमेर

देखते रह गए हसरत से बेचारे लायक

Comments

Loading comments…